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दुर्गा जी की आरती
दुर्गा माता हिन्दू धर्म की एक अत्यंत शक्तिशाली और मातृस्वरूप देवी हैं, जिन्हें सभी बुरी शक्तियों और अधर्म पर विजय प्राप्त करने वाली माँ के रूप में पूजनीय माना जाता है। उनका नाम ही ‘दुर्ग’ से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘अपराजेय’ या ‘जिसका कोई दुर्गम स्थान न हो’। दुर्गा जी का स्वरूप सौंदर्य, शक्ति, करुणा और साहस का अद्भुत समागम है। वे दशभुजा धारण करती हैं और प्रत्येक हाथ में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र लिए हुए हैं, जो उनके अनंत सामर्थ्य और विजय की निशानी हैं। दुर्गा माता का प्रमुख उत्सव नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है, जब पूरे नौ दिन उनकी विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है।
जय अंबे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
ओम जय अंबे गौरी
मांग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥
ओम जय अंबे गौरी
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥
ओम जय अंबे गौरी
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥
ओम जय अंबे गौरी
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥
ओम जय अंबे गौरी
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥
ओम जय अंबे गौरी
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय अंबे गौरी
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥
ओम जय अंबे गौरी
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूं।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥
ओम जय अंबे गौरी
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥
ओम जय अंबे गौरी
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
ओम जय अंबे गौरी
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
ओम जय अंबे गौरी
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥
ओम जय अंबे गौरी, ओम जय अंबे गौरी
जोर से बोलो जय माता दी, सारे बोले जय माता दी।
बोल सांचे दरबार की जय
माता दुर्गा का चरित्र शक्ति और मातृत्व का अद्भुत मेल है। वे न केवल एक वीरांगना योद्धा हैं जो असुरों का संहार करती हैं, बल्कि एक दयालु माँ भी हैं जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी सभी समस्याओं का निवारण करती हैं। दुर्गा जी की पूजा से व्यक्ति को न केवल बाहरी सुरक्षा मिलती है, बल्कि आंतरिक मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है। उनका भक्तजनों के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण की भावना उन्हें जीवन में संकटों का सामना करने के लिए दृढ़ बनाती है।
दुर्गा माता की महिमा यह भी सिखाती है कि जीवन में न केवल शक्ति आवश्यक है, बल्कि उसे धर्म और न्याय के साथ संतुलित रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। वे हमें सशक्त बनने के साथ-साथ करुणामय और धर्मप्रिय बने रहने की प्रेरणा देती हैं। इसलिए दुर्गा जी केवल एक देवी नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में विजय, समर्पण और शक्ति का प्रतीक हैं, जिनकी भक्ति से मनुष्य अपने जीवन के अंधकारों को दूर कर प्रकाश की ओर अग्रसर हो सकता है।
