कुंजबिहारी जी भगवान श्रीकृष्ण का एक मधुर और भक्तिपूर्ण रूप है, जिनका उल्लेख विशेष रूप से वृंदावन और ब्रज की लीलाओं में होता है। “कुंजबिहारी” शब्द का अर्थ है—वह जो वृंदावन के कुंजों (छायादार उपवनों) में विहार करते हैं। यह नाम श्रीकृष्ण के उस रूप को दर्शाता है जो गोपियों के संग रास रचाते हैं, बंसी बजाते हैं और प्रेम, करुणा तथा माधुर्य से ओतप्रोत हैं। कुंजबिहारी जी केवल एक देवता नहीं, बल्कि वे प्रेम के परम आदर्श हैं, जो प्रत्येक भक्त के हृदय में आनंद, भक्ति और आत्मिक सुख का संचार करते हैं।

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

कुंजबिहारी जी का रूप अत्यंत आकर्षक और मनोहारी होता है—वे मुरलीधर, नीलवर्ण, पीताम्बरधारी और मोरपंख धारण किए हुए होते हैं। वृंदावन की गलियों, यमुना के तटों और गऊओं के बीच उनकी बाल लीलाएँ आज भी भक्तों के मन में जीवंत हैं। उनके प्रति गोपियों का निःस्वार्थ प्रेम, राधा रानी के साथ उनका दिव्य मिलन और रासलीला की मधुरता भक्तों को भगवान से जोड़ने का सहज माध्यम है। भक्तिकालीन कवियों जैसे सूरदास, मीराबाई और रसखान ने कुंजबिहारी के प्रेममय रूप को अपनी रचनाओं में अत्यंत भावुकता और श्रद्धा से चित्रित किया है।

कुंजबिहारी जी की भक्ति व्यक्ति के मन को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर उसे आत्मिक प्रेम की ओर ले जाती है। उनके नाम का स्मरण करने मात्र से ही मन में शांति, प्रेम और भक्ति की भावना जागृत होती है। वे न केवल राधा के प्रियतम हैं, बल्कि वे प्रत्येक भक्त के हृदय के निकटतम हैं। इसलिए कुंजबिहारी जी का स्मरण, उनका भजन और उनकी आराधना भक्तों के जीवन में प्रेम, आनंद और मोक्ष की अनुभूति कराते हैं।

kunj bihari ji ki arti