राधाष्टमी के अवसर पर वृषभानु लली की आरती का गायन करना बड़ा ही मंगलकारी माना गया है।
देवी राधा साक्षात लक्ष्मी स्वरूप हैं। राधाष्टमी पर देवी राधा की पूजा करके इनकी आरती का गायन करने से राधा रानी बहुत ही प्रसन्न होती हैं।

आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की…
आरती श्री वृषभानु लली की।

त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेकविराग विकासिनि ।
पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दरता की ॥

॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥

मुनि मन मोहन मोहन मोहनि, मधुर मनोहर मूरति सोहनि ।
अविरलप्रेम अमिय रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की ॥

॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥

संतत सेव्य सत मुनि जनकी, आकर अमित दिव्यगुन गनकी ।
आकर्षिणी कृष्ण तन मनकी, अति अमूल्य सम्पति समता की ॥

॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥

कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि, चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि ।
जगजननि जग दुखनिवारिणि, आदि अनादिशक्ति विभुता की ॥

॥ आरती श्री वृषभानु लली की, मंजुल मूर्ति मोहन ममता की ॥

कहते हैं कि जहां पर देवी राधा के नाम का गायन और ध्यान किया जाता है भगवान श्रीकृष्ण बिना बुलाए भी स्वयं आ जाते हैं।
ऐसे में जो भक्त वृषभानु लली का आरती का गायन करते हैं उनपर राधारानी के साथ श्रीकृष्ण की भी कृपा स्वतः हो जाती है।

राधारानी जी