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तुलसी माता की आरती
तुलसी माता हिन्दू धर्म में एक पवित्र और पूजनीय पौधे के रूप में जानी जाती हैं, जिन्हें देवी का स्वरूप माना गया है। तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आध्यात्मिक, औषधीय और सांस्कृतिक रूप से भी उनका विशेष स्थान है। पुराणों के अनुसार, तुलसी माता भगवान विष्णु की परम भक्त हैं और उन्हें लक्ष्मी का ही एक रूप माना गया है। तुलसी विवाह का पर्व, जो कार्तिक मास की एकादशी को मनाया जाता है, इस बात का प्रतीक है कि तुलसी का जीवन केवल एक पौधे का नहीं, बल्कि एक दिव्य आत्मा का है जो श्रीहरि विष्णु से प्रेम और समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करता है।
तुलसी के पौधे को घर में रखना शुभ और मंगलकारी माना जाता है। प्रातःकाल और संध्या के समय तुलसी माता की आरती, जल अर्पण और परिक्रमा करना हिन्दू गृहस्थ जीवन की एक आवश्यक धार्मिक प्रक्रिया मानी जाती है। ऐसा विश्वास है कि तुलसी माता की उपासना से घर में सुख-शांति, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। आयुर्वेद में भी तुलसी को ‘संजीवनी बूटी’ कहा गया है, क्योंकि उसमें रोग नाश करने की अद्भुत शक्ति होती है। तुलसी माता का सुगंधित स्पर्श, वातावरण को शुद्ध करता है और मन को निर्मल बनाता है।
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता ।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता।।
मैय्या जय तुलसी माता।।
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर।
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता।
मैय्या जय तुलसी माता।।
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या।
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता।
मैय्या जय तुलसी माता।।
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता।
मैय्या जय तुलसी माता।।
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में।
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता।
मैय्या जय तुलसी माता।।
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता।
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता।
मैय्या जय तुलसी माता।।
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता॥
मैय्या जय तुलसी माता।।
तुलसी माता की भक्ति हमें यह सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा केवल मंदिरों तक सीमित नहीं होती, बल्कि हमारे जीवन के हर छोटे कार्य में समर्पण और पवित्रता होनी चाहिए। वे त्याग, सेवा, भक्ति और शुद्धता की जीवंत प्रतीक हैं। इसलिए तुलसी माता को पूजना मात्र एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह जीवन के प्रति हमारी आध्यात्मिक जागरूकता और प्रकृति के प्रति हमारे आदरभाव का प्रतीक है।
